Supreme Court Property Dispute – भारत में प्रॉपर्टी को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। घर, जमीन या फ्लैट को लेकर अक्सर भाई-बहनों, रिश्तेदारों या यहां तक कि दोस्तों के बीच भी खींचतान हो जाती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक बड़ा और साफ फैसला दिया है, जिससे लोगों की कई गलतफहमियां दूर हो जाएंगी।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दो भाइयों के बीच संपत्ति को लेकर झगड़ा सामने आया। एक भाई का कहना था कि उसे प्रॉपर्टी गिफ्ट में मिली है और वह कई सालों से उस घर में रह रहा है। वहीं दूसरा भाई कुछ दस्तावेज दिखाकर दावा कर रहा था कि प्रॉपर्टी उसकी है। उसके पास पावर ऑफ अटॉर्नी, एग्रीमेंट टू सेल और हलफनामा जैसे कागज़ थे।
अब सवाल ये था कि इन दस्तावेजों के आधार पर क्या किसी को प्रॉपर्टी का मालिक कहा जा सकता है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि नहीं।
रजिस्ट्री के बिना नहीं बन सकते मालिक
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो टूक शब्दों में कहा कि भारत में अचल संपत्ति (जैसे जमीन, मकान) का मालिक वही होता है, जिसके नाम पर रजिस्ट्री होती है। सिर्फ पावर ऑफ अटॉर्नी, एग्रीमेंट टू सेल या कोई हलफनामा आपको मालिक नहीं बना सकता। अगर आपने कोई प्रॉपर्टी खरीदी है और उसकी रजिस्ट्री नहीं करवाई है, तो कानून के हिसाब से आप मालिक नहीं हैं।
पावर ऑफ अटॉर्नी और सेल एग्रीमेंट की सच्चाई
देश में बहुत सारे लोग यह सोचकर प्रॉपर्टी खरीद लेते हैं कि उनके पास पावर ऑफ अटॉर्नी और एग्रीमेंट टू सेल है, तो सब ठीक है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने ये भ्रम खत्म कर दिया है। पावर ऑफ अटॉर्नी का मतलब होता है कि कोई आपको उसकी तरफ से काम करने का अधिकार दे रहा है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आप मालिक बन गए।
सेल एग्रीमेंट तो बस एक वादा होता है कि भविष्य में प्रॉपर्टी बेची जाएगी, ये भी मालिकाना हक नहीं देता। बिना रजिस्ट्री के इन कागज़ों की कोई कानूनी वैल्यू नहीं होती।
रजिस्ट्री क्यों है सबसे जरूरी
रजिस्ट्री एक सरकारी प्रक्रिया है जिसमें आपके नाम पर संपत्ति का ट्रांसफर रिकॉर्ड किया जाता है। इसमें स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस लगती है, लेकिन यही एक तरीका है जिससे आप कानूनी रूप से प्रॉपर्टी के मालिक बनते हैं। बिना रजिस्ट्री के न तो आप प्रॉपर्टी बेच सकते हैं, न लोन ले सकते हैं, और न ही किसी विवाद में मालिकाना हक साबित कर सकते हैं।
खरीदारी करते समय बरतें सावधानी
अगर आप कोई फ्लैट, प्लॉट या घर खरीदने जा रहे हैं, तो सबसे पहले ये देखिए कि रजिस्ट्री है या नहीं। सिर्फ मौखिक सहमति, एग्रीमेंट टू सेल या पावर ऑफ अटॉर्नी पर भरोसा न करें। किसी वकील से सारे दस्तावेज चेक करवाएं और सुनिश्चित करें कि प्रॉपर्टी पर कोई कानूनी पेंच नहीं है।
प्रॉपर्टी के पिछले रिकॉर्ड, म्युटेशन, टैक्स रसीद, और मालिकाना हक से जुड़े सभी कागज़ जांचें। रजिस्ट्री ऑफिस से यह भी पता कर सकते हैं कि प्रॉपर्टी किसके नाम पर दर्ज है।
इस फैसले से क्या असर पड़ेगा
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक केस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे देश में हजारों चल रहे प्रॉपर्टी विवादों को प्रभावित करेगा। इससे यह बात पूरी तरह साफ हो गई है कि संपत्ति खरीदने-बेचने के लिए रजिस्ट्री कराना अनिवार्य है।
अब भविष्य में कोर्ट भी ऐसे मामलों में यही फैसला आधार बनाएंगे। यानी अगर आपके पास रजिस्ट्री नहीं है, तो आप कोर्ट में भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे।
लोगों में जागरूकता बढ़ेगी
यह फैसला उन लोगों के लिए बड़ा सबक है जो कानून की प्रक्रिया को नजरअंदाज करते हैं या छोटी बचत के चक्कर में बिना रजिस्ट्री के प्रॉपर्टी खरीद लेते हैं। अब अगर कोई प्रॉपर्टी खरीदनी है तो कानूनन सही तरीके से ही खरीदनी होगी।
साथ ही, यह फैसला रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता लाएगा और संपत्ति से जुड़ी धोखाधड़ी की घटनाएं कम होंगी। खरीदने और बेचने वाले दोनों को अब सतर्क रहना होगा।
निष्कर्ष
अगर आप कोई संपत्ति खरीदने की सोच रहे हैं, तो सबसे पहली और जरूरी बात है – रजिस्ट्री कराना न भूलें। चाहे रिश्तेदार से खरीदें या किसी एजेंट से, रजिस्टर्ड डीड ही एकमात्र वैध दस्तावेज है जो आपको कानूनी तौर पर मालिक बनाता है। बाकी सारे दस्तावेज सपोर्टिंग हो सकते हैं, लेकिन वे मालिकाना हक नहीं देते।